ख्वाहिशों की मौत-11

सर्द हवाएं और नदी की तेज लहरें, कल-कल बहता पानी और विवाह के अठखेलिया लेते मनमोहक गीत, हर किसी में रोमांच से भर रहा था,  इसी बीच सभी उपस्थित तो थे लेकिन सभी अपनी एक अलग - अलग दुनिया में खोए हुए थे। कोई अतीत में तो कोई भविष्य में अपने , या सगे संबंधीयों किसी और को उन गीतों में उतारने में लगा था। नवयुतियाँ अपने विवाह के विचार में मग्न तो नवयुवक किसी और ख्याल में मस्त थे। इसी बीच प्रीति अपने नेट वाली गुलाबी दुपट्टा संभालने की भरसक कोशिश कर रही थी। उसे गुस्सा भी आ रहा था क्योंकि बहुत सी रस्म उसे ही निभानी थी। इसी बीच ना जाने दिनेश को क्या सूझा, उसने प्रीति के पास जाकर अचानक उसके बालों में लगी चार क्लिप में से दो क्लिप निकाली और उसके लहंगे के पीछे दोनों क्लिप से चुनरी को स्थिर कर दिया। सभी देखते रह गए। दोनों ने एक दूसरे की तरफ मुस्कुरा कर देखा और लोक लज्जा को ध्यान में रखकर दिनेश ने अब ठीक तो, प्रीति ने धन्यवाद के साथ उसकी तरफ देखने वाली नजरों को तार-तार किया, और फिर दोनों अपनी-अपनी जगह पर यथावत खड़े हो गए । अब प्रीति बिना किसी रूकावट के सजगता से हर काम कर पा रही थी, लेकिन उसकी क्रियाकलाप उसके मन की असहजता साफ बयां कर रही थी। वो रह रह कर  उसकी ओर ध्यान देने वाली दिनेश की तरह झांकती और दिनेश भी किसी भंवरे की तरह किसी न किसी काम को लेकर  उपस्थित हो जाता,

बुआ  उनकी सभी हरकतों पर नजर बनाए हुए थे। किसी तरह कार्यक्रम संपन्न हुआ और सभी भोजन कर अपनी बातचीत में मस्त थे, लेकिन उसी पल अचानक गाड़ी की आवाज सुनकर (बुलेट) सभी चौक पड़े क्योंकि उस समय में मात्र एक चौधरी परिवार के पास ही गाड़ी हुआ करती थी। किसी अनहोनी का इशारा करती थी। कैकयी   उठकर दरवाजे की ओर भागी, जैसा  दरवाजा खोला तो चौधरी घबराया हुआ सा दिखा और उसने एक ही स्वर में बिना रुके अपने पिता के बीमार होने की खबर सुना दी और कैकयी से अति शीघ्र लौट चलने की बात कही । गंभीर स्थिति को देख दिनेश ने अपने मायूस चेहरे से प्रीति को इशारा किया और फिर बुआ के साथ लौट चलने की इच्छा जाहिर की है। वक्त की नजाकत और नाजुक स्थिति में यही सही था,  प्रीति ने लौटते वक्त जानबूझकर अंदर से अपना ऊनी दुपट्टा लाकर दिनेश को दे दिया, देते समय वो धीरे से बोली संभाल कर रखना हम ले लेंगे। ख्याल रखिए अपना और दिल का भी बोलते हुए प्रीति ने उसे नम आंखों से विदा किया। दिनेश भी  बीच मझधार की स्थिति में कुछ न बोल सका, सिर्फ जल्द मिलेंगे बोलकर गाड़ी की ओर भागा I उसे एक तरफ अपने नाना की चिंता तो दूसरी तरफ उम्र का झुकाव अपनी ओर आकर्षित कर रहा था।

गाड़ी तेज़  रफ्तार से चली जा रही थी I तभी चौधरी  ने अचानक बीच रास्ते में तेजी से ब्रेक लगाया । सड़क पर कोई नहीं था सिर्फ एक मध्यम रोशनी नजर आ रही थी। इससे पहले कि वह बुआ भतीजे कुछ समझ पाते चौधरी ने उन्हें शांत रहने का इशारा किया।

कोई कुछ भी बोले उत्तर मैं दूंगा, तुम दोनों नहीं I बड़ी विपरीत परिस्थिति दोनों ने एक - दूसरे की तरफ देखा I तभी एक  अघोरी गाड़ी के पास आकर खड़ा हो गया, आते ही बोल पड़ा......... क्या चौधरी काल काट लेगा जाना तो सबको है, और क्या छोरे क्या देखता है तू खुद ही तो हम से कम नहीं है। जितनी आग हमने जलाई उससे ज्यादा तेरे सीने में दफन है। तुझे क्या लगता है, हम शमशान जगाते हैं। एकदिन तू इसी शमशान की राख को लेकर घूमेगा I उसकी बुआ को देख कर कहा बेटी तू चिंता मत कर यह चौधरी बेकार चिंता करता है। अघोरपन्थ की छाया में रहने वाले पर तो काल भी कृपा करता है ,

महाकाल साथ है तेरे, कुछ भी नहीं हुआ तेरे ससुर को........... जा  बेफिक्र होकर जा अपने भाई का ख्याल रखना, इससे पहले  वो कुछ समझ या कहे पाते,अघोरी  अपनी मस्ती में आगे श्मशान में विलुप्त हो गया। चौधरी मुस्कुराकर क्या हुआ डर गए, अघोरी है दिनेश कभी झूठ नहीं बोलते। खैर चलो अब सब ठीक होगा I कहकर आगे बढ़ गए। लेकिन गाड़ी में पीछे बैठे दोनों बुआ भतीजे को काटो तो खून नहीं ऐसी स्थिति में थे। किसी अघोरी का प्रत्यक्ष और जागृत रूप इतना विकराल  और उसकी कही बातें दोनों ने ही उन्हें डरा सा दिया था। वह उसे कहे हर शब्द को आपस में जोड़ने की एक कोशिश  में लगे थे।

वही चौधरी पहले से ज्यादा बेफिक्र होकर सड़क पर गाड़ी दौड़ा रहा था। ऐसा लगा जैसे उसे अब कोई चिंता ना थी। थोड़े ही देर में मकान आ गया। कैकयी  और दिनेश तेजी से बाबूजी के कमरे की ओर भागे तो उन्होंने देखा तो वह बैठ कर खाना खा रहे थे। बड़ा आश्चर्य हुआ उन्हें ,कि जो पिछले एक सप्ताह से उनके जाने से बीमार पड़े थे। आखिर अचानक कैसे ठीक हुए , लेकिन चौधरी के चेहरे पर एक भी सवाल नहीं था। वह और उसके पिताजी एक दूसरे की तरफ देख कर मुस्कुरा रहे थे। क्या तुमने ही काका अघोरी को खबर दी थी।

क्यों परेशान किया उसे, सालों हो गए उसे अघोर पंथ में शामिल होकर, उसे सांसारिक जिव बंधनों से दूर रखो, समाज के लिए साधना करता है ना कि परिवार के लिए, हमें उसे ऐसे परेशान नहीं करना चाहिए।

कैकयी आश्चर्यचकित थी की उसे इतने साल हो गए उसे पता नहीं कि रास्ते में दिखने वाला अघोरी वास्तव में उनके ही  परिवार के सदस्य था। दिनेश क्या वाकई में इतनी शक्ति संभव है कि, आखिर मेरे भाई के बारे में क्या-क्या कहा, बहुत से सवाल थे उसके दिमाग में, वही दिनेश ने डर,आश्चर्य ,और प्यार के मिले-जुले व्यवहार में खोया हुआ, वह कुछ न कह पाया और शांत दिमाग से लेट गया.......

क्रमशः .......

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4 Comments

Rupesh Kumar

19-Dec-2023 09:21 PM

V nice

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Gunjan Kamal

19-Dec-2023 08:29 PM

👏👌

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Shnaya

19-Dec-2023 11:16 AM

Nice one

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